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उर्दू के श्रेष्ठ व्यंग्य

सैयद शहरोज़ क़मर

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 624
आईएसबीएन :9788170285694

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उर्दू के श्रेष्ट कवियों द्वारा संकलित श्रेष्ठ व्यंग्य रचनाएँ...

Urdu ke Shrestha Vyangya - A hindi Book by - Shahroz Kamar उर्दू के श्रेष्ठ व्यंग्य - शहरोज कमर

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

जिसे पढ़कर हँसी आ जाय वो हास्य हो सकता है,लेकिन जिस रचना का पाठ अन्तस् तक विचलित कर दे वही व्यंग्य हैं। इस संकलन की रचनाओं की कसौटियाँ यहीं हैं, तथा इस बुनियाद पर व्यंग्य लेखक दृढ़-स्थिर है। ख्वाजा हसन निजामी, रशीद अहमद सिद्दीकी,शौकत थानवी और पतरस बुखारी से लेकर मुज्तबा हुसैन तक उर्दू के शीर्ष व्यंग्य-लेखों निबन्धों का इसे आप प्रतिनिधि संकलन कर सकते हैं, जिसे सम्भव किया है युवा कवि-लेखक शहरोज कमर ने। रीति-रिवाज तथा मान्यताएँ हर समय व काल में बदलती रही है। तेजी के साथ बदल रही सामाजिक मान्यताओं और मूल्यों के काल मे व्यंग्य-लेखन चुनौती भरा सृजन-कर्म माना जाता है, संगृहीत व्यंग्य लेखों में सामाजिक व्यवस्थागत विडंबनाओं एवं विद्रूपताओं की खरी और पैनी पड़ताल की गई है। विषम वैविध्य पर्याप्त है। रोजमर्रा के जीवन से उठाये गये विषयों को इन व्यंग्य-लेखों में इतनी रोचकता और कलात्मकता के साथ शब्दों का जामा पहनाया गया है कि पाठक उनके हास्य-व्यंग्य के प्रभाव से अछूता नहीं रह जाता। भाषा में सहजता और संवादों की अन्योन्याश्रय जीवंतता इसकी पठनीयता के अतिरिक्त गुण हैं। संगृहीत व्यंग्य निबन्धों को पढ़ने के बाद शिद्दत से अहसास होता है कि यह महज लिखने के लिए नहीं लिखे गए हैं,बल्कि किसी पीड़ा से दो चार होते हुए अन्तर्मन से उपजे हैं। साथ ही लेखकों का संक्षिप्त परिचय भी दिया गया है।

 

उर्दू के श्रेष्ठ व्यंग्य

व्यंग्य-लेखन हमारे यहाँ सामान्यतः दूसरे दर्जे की विधा मानी जाती है। माना यह जाता है कि हमारे भाषायी संस्कार में हास्य और व्यंग्य का तत्व आदि समय से ही अस्तित्व में है। इसका कारण है, उर्दू तथा हिन्दी में शामिल संस्कृत तथा अरबी-फ़ारसी शब्दों, मुहावरों की बहुलता, जो देशज भाषा तथा बोलियों में आकर अनूठे आकर्षण पैदा करते हैं। शेक्सपियर, आर्नोल्ड तथा अलेक्ज़ेण्डर पोप जैसे अंग्रेज़ी कवियों की पंक्तियों में उपस्थित समसामयिक स्थितियों, विडम्बनाओं पर तीक्ष्ण वार जब व्यंग्य माने जाने लगे तो हमने भी बाज़ाप्ता भारतीय सन्दर्भों में ऐसे रचनाकारों की खोज-बीन शुरू की, पता यूँ चला कि मुग़ल बादशाह शाहजहाँ के समय पैदा हुआ जाफ़र ज़टुल्ली (1659 ई.) भारत का पहला व्यंग्य-कवि है। औरंगज़ेब के शासनकाल में मृत्यु को प्राप्त इस कवि ने कछुआनामा, भूतनामा जैसे अमर-काव्य की रचना की। औरंगज़ेब की मौत के बाद सत्ता के लिए उसके पुत्रों के मध्य हुए युद्ध को केन्द्र में रखकर रचित उनकी कविता जंगनामा व्यंग्य-इतिहास में मील का पत्थर है।

योरोप की भाँति भारतीय उपमहाद्वीप में भी व्यंग्य जैसी अचूक विधा का प्रयोग सबसे अधिक पद्य में किया गया। जाफ़र ज़टुल्ली से यह शुरू होकर कबीर, मीर, सौदा, नज़ीर अकराबादी, अकबर इलाहाबादी, रंगीन इंशा आदि अनगिनत उर्दू शायरों के यहाँ सामाजिक व्यवस्थाओं तथा धार्मिक अन्धविश्वासों पर कटाक्ष मिलता है। ग़ालिब जैसा शायर अपने ख़तों के माध्यम से साहित्य जगत् को उच्च स्तर का व्यंग्य-गद्य देता है। लेकिन व्यंग्य की विधा को स्वीकृति मिली 1877 में लखनऊ से मुंशी सज्जाद हुसैन के सम्पादन में संचालित पत्र अवधपंच के प्रकाशन से।
उर्दू व्यंग्य के इतिहास को पृष्ठवद्ध करना तथा क़रीब-क़रीब सभी नामचीन लोगों की रचनाओं को शामिल करना दुष्कर न सही कठिन-कर्म अवश्य है। बीती सदी भारतीय उपमहाद्वीप के राजनीतिक, सांस्कृतिक तथा साहित्यिक विकास की दृष्टि से काफी महत्त्वपूर्ण है। अन्य विधाओं की दृष्टि से काफी महत्त्वपूर्ण है। अन्य विधाओं की तरह व्यंग्य को इसी युग में लोकप्रियता मिली। जब उर्दू में व्यंग्य की बात की जाती है तो इसका अर्थ-आशय गम्भीर-गद्य लेखन से लगाया जाता है, जहाँ शब्द समय की विसंगतियों पर प्रकाश डालते हैं तथा यही शब्द मुक्ति का मार्ग भी बतलाते हैं। यह सिर्फ़ गुदगुदाते ही नहीं हैं। हमें अपने आप को नये सिरे से सोचने पर विवश भी करते हैं। सिर्फ़ चुटकुलेबाज़ी को व्यंग्य नहीं माना जा सकता है, जैसा इन दिनों कवि-सम्मेलनों के हास्य रस के कवि कर रहे हैं।

बीसवीं सदी के शुरुआती दशकों में व्यंग्य-निबन्धकारों में महफ़ूज अली बदायूँनी, ख़्वाजा हसन निज़ामी, क़ाज़ी अब्दुल गफ़्फ़ार, हाजी लक़लक़, मौलाना अबुलकलाम आज़ाद, अब्दुल अज़ीज़, फ़लक पैमा आदि का नाम सफ़े-अव्वल है। उसके बाद फ़रहत उल्लाह बेग, पतरस बुख़ारी, रशीद अहमद सिद्दीक़ी, मुल्ला रमूज़ी, अज़ीम बेग चुग्ताई, इम्तियाज़ अली ताज, शौकत थानवी, राजा मेंहदी अली ख़ान और अंजुम मानपुरी आदि व्यंग्यलेखकों का नाम और काम नज़र आता है। इसी दौर के इब्न-ए-इंशा भी हैं। भारतीय उपमहाद्वीप में उर्दू व्यंग्य लेखन के इतिहास में एक के बाद कई क़लमकारों का नाम दर्ज होता गया, लेकिन जिनमें ख़म था, उन्हीं को ल

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